- सहकारिता आन्दोलन को जन-जन तक पहॅंुचाना।
- कृषकों को कम ब्याज दरों पर सुलभ कृषि ऋण उपलब्ध कराना।
- कृषि निवेशों की समय में आपूर्ति।
- कृषकों को उनकी उपज का यथोचित मूल्य दिलवाना।
- सहकारी समितियों द्वारा सदस्यों को उनकी आवश्यकता के अनुसार अकृषक ऋण जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक दायित्वों की पूर्ति हेतु ऋण उपलब्ध कराना।
- कृषकों को साहूकारों से मुक्त कराना।
- सहकारिता के माध्यम से स्वरोजगार का सृजन।
- सहकारी संस्थाओं के माध्यम से शासन की जनहितकारी नीतियों को कार्यान्वित कराया जाना।
- दूरस्थ तथा ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता वस्तुओं को उचित दर पर उपलब्ध कराया जाना।
- सहकारी संस्थाओं के माध्यम से कृषि उपजों की खरीद तथा विपणन।
- सहकारिता में श्रम समितियों को 2.00 लाख रू0 तक बिना निविदा के कार्य आबंटित कर रोजगार सृजन कराना।
- सहकारिता का स्वायत्तीकरण 1042 स्वायत्त सहकारिताओ का गठन।
- प्रारम्भिक समितियों में 1011 मिनी बैंकों/मिनी बैंक विस्तार पटल की स्थापना कर जनता के द्वार बैंक।
- समस्त जनपदो में जिला सहकारी बैंको की स्थापना।
- सहकारी समितियो को स्वाश्रयी बनाना।
- पैक्स को बहुउद्देशीय समिति के रुप चरणबद्व रुप से परिवर्तित करना।
- पर्यटन एवं ग्रामीण समितियो को प्रोत्साहन।